व्यासपीठ राजघाट, नम्होल, ब्यासपुर (बिलासपुर), हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला (प्राचीन नाम ब्यासपुर) में मनाली से शिमला (NH-3) या धर्मशाला से शिमला (NH-88) की ओर जाने वाले रोड पर नम्होल नामक स्थान है। नम्होल के मुख्य चौक से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर राजघाट नामक स्थान है। राजघाट में हिमाचल प्रदेश में दुग्ध व्यवसाय में क्रांति लाने वाली ब्यास कामधेनु संस्था का मुख्यालय और मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट भी है।
राजघाट में ही शिमला की ओर जाते हुए दाहिनी ओर वन विभाग का विश्राम गृह है। इस विश्राम गृह के सामने चीड़ और देवदार के वृक्षों के झुरमुट में एक सुंदर देवस्थल विद्यमान है। इस देवस्थल पर एक विशाल पीपल का वृक्ष है। स्थानीय लोग इस स्थान को व्यासपीठ राजघाट कहते हैं। मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में स्थान हिमाचल और पंजाब में सुप्रसिद्ध देव बाबा बालक नाथ का स्थान माना जाता था। नम्होल और उसके आसपास के गांवों के बुजुर्गों ने लगभग सौ वर्ष पहले इस स्थान की स्थापना की थी। तबसे लेकर समय समय पर इस स्थान पर पिंडी रूप में देव पूजा होती रहती थी। यहाँ एक छोटा सा प्राचीन मन्दिर भी था लेकिन वह जीर्ण शीर्ण अवस्था में था। लेकिन वर्ष 2013 में जीर्णोद्धार की दृष्टि से इस स्थान पर बाबा बालक नाथ का धूणा स्थापित किया गया। इसके पश्चात सितम्बर 2013 में इस स्थान पर भगवान शिव तथा नन्दी महाराज की मूर्ति भी स्थापित की गई। यहाँ पर भगवान शिव शिवलिंग के रूप में भी विद्यमान हैं। इसके बाद इसी स्थान पर 15 अगस्त 2017 को शाहतलाई नामक स्थान से बाबा बालक नाथ की मूर्ति लाकर स्थापित की गयी और साथ वीर गोगा महाराज की मूर्ति हिमाचल के प्रसिद्ध लोकगायक सुंदर राम (सुंदर कुम्हार) तथा उनकी मण्डली के द्वारा के स्थापित की गई। इसके बाद 28 मार्च 2020 को मारुति भगवान (हनुमान) की मूर्ति भी स्थापित की गई।
स्थानीय निवासी इंजीनियर लेखराम कौंडल के अनुसार राजघाट का एक और ऐतिहासिक महत्व भी है। उनके संस्मरण के अनुसार सन 1981 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरस राजघाट आये थे और उन्होंने वहीं पर रुक कर अल्पाहार किया था।
स्थानीय लोगों के लिए इस देव स्थान का अत्यंत धार्मिक महत्व है। इस देव स्थान पर धर्म जागरण की दृष्टि से सर्वप्रथम 2013 में शिवपुराण कथा का आयोजन किया किया गया था जो 11 दिन तक चला था। इस देव स्थान पर प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान एवं आयोजन में स्थानीय निवासी बिमला देवी का भरपूर सहयोग रहता है और बिमला देवी ही प्रतिदिन इस देव स्थान पर पूजा करती हैं और देवस्थान की देखभाल भी करती हैं। वर्ष में एक बार इस स्थान पर स्थानीय लोगों द्वारा भंडारे का आयोजन किया जाता है। अपनी हर उपलब्धि के लिए ब्यास कामधेनु संस्था इस देवस्थान पर विद्यमान देवताओं के आशीर्वाद को श्रेय देती है। बिलासपुर जिला की सबसे ऊँची पहाड़ी और सुप्रसिद्ध प्रयटक स्थल बहादुरपुर धार यहाँ से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर है।
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