स्वर्गीय गिरधारी लाल, ब्रह्म्पुखर, ब्यासपुर(बिलासपुर), हिमाचल प्रदेश
स्वर्गीय गिरधारी लाल का जन्म 31 अगस्त सन 1936 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के सियोला नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम तुलसी लाल ओर माता का नाम सीता देवी था। गिरधारी लाल 3 भाइयों मे सबसे बड़े थे। इनका विवाह नरेंद्रा देवी के साथ हुआ था। इनके 5 बच्चे हुए जिनके नाम हैं -सुरजीत कौर, निर्मला देवी, सोमा देवी, क्रांति देवी, मदन लाल महाजन।
छोटी आयु में ही उन्होंने अपने पिता के साथ कृषि कार्य में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। आगे चलकर उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया। व्यापार के अंतर्गत वे फसल कटाई के बाद आसपास के सभी गावों से अनाज एकत्र करके शहर में बड़े व्यापारियों को बेच आते थे और जितना भी किसानों का हिसाब बनता था उसे चुकाने के बाद हुई बचत से अपना घर चलाते थे। इसके साथ ही वे पंजाब और हरियाणा के व्यापारियों के साथ पशुओं का व्यापार भी करते थे। स्थानीय लोग उन्हें प्यार से लालाजी के नाम से भी जानते थे।
गिरधारी लाल से जुड़ा एक किस्सा नम्होल के पास घ्याल गाँव के प्रसिद्ध वैद्य संतराम शर्मा बताते हैं कि वे लालाजी को अपनी फसल बेचा करते थे और इस दौरान कई बार उनकी दुकान से सामान भी खरीदा करते थे। एक बार की बात है कि शहर में लहसुन के भाव 10 गुना बढ़ गए और लाला गिरधारी लाल शहर में लहसुन बेचने जा रहे थे। तभी वैद्य जी दुकान पर आए और लहसुन माँगा। वैद्य जी शहर के भाव से परिचित नहीं थे और लाला जी कभी अपनों को निराश नहीं करते थे, उन्होंने बिना सोचे ही 3 किलो लहसुन उन्हें गाँव में चल रहे भाव के अनुसार दे दिया। बाद में जब वैद्य जी को यह पता चला तो वे लाला जी से बहुत प्रभावित हुए और सारे गाँव में यह किस्सा सुनाने लगे।
लाला जी सन 1975 में सियोला से ब्रहम्पुखर नामक स्थान पर आकर बस गए। उस समय ब्रहम्पुखर गाँव डकैतों और चोरों के लिए बदनाम था। वहाँ से पूरे दिन में सिर्फ एक ही बस जाया करती थी और अगर किसी वजह से वह बस छूट जाए तो यात्रियों को चौराहे पर ही रात गुज़ारनी पड़ती थी। जिसकी वजह से यात्रियों को कई बार डकैतों का सामना भी करना पड़ता था। ब्रहम्पुखर गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि यात्रियों को रात में चौराहे पर न सोना पड़े और डकैतों का सामना न करना पड़े इसलिए लालाजी रोज शाम को चौराहे पर जाकर देखते थे कि कोई यात्री रह तो नहीं गया। अगर कोई मिलता तो वे उसे अपने घर ले आते और भोजन करवाकर अगले दिन सुबह भेजते थे।
लाला जी की सामाजिक छवि बहुत अच्छी थी, इसी के कारण हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल भी उनके घर रुके थे। हिन्दू धर्म और भगवान में आस्था होने के कारण वे हमेशा साधू-संतों की संगति में रहते थे। बिलासपुर के सुप्रसिद्ध संत श्री 1008 बाबा कल्याण दास महाराज (काला बाबा जी) उन्हें बहुत प्रेम करते थे। 12 जून 2007 को लाला गिरधारी लाल परलोक सिधार गए लेकिन उनकी ईमानदारी के किस्से आज भी लोगों में प्रसिद्ध हैं।
लाला जी के सुपुत्र मदन लाल महाजन बिलासपुर के जाने माने व्यवसायी हैं। इनके 3 बच्चे हैं जिनमें सुपुत्र अजय महाजन विश्व की सुप्रसिद्ध आईटी कम्पनी इनफ़ोसिस में कार्यरत है और सुपुत्री अनुराधा Govt Medical College Hamirpur से MBBS कर रही हैं और आरती कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से हॉर्टीकल्चर और वेजिटेबल विज्ञान से एमएससी कर रही हैं।
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