दावींनाथ महाराज, धूणी पंजैल, ब्यासपुर (बिलासपुर) हिमाचल प्रदेश
व्यासपीठ राजघाट नम्होल से सिकरोहा की ओर जाते हुए थोड़ी दूरी पर पांडव मन्दिर तथा पांडव मन्दिर से आगे चलकर जोड़ नामक स्थान (जोड़ेश्वर महादेव) आता है। इस स्थान से लगभग 3 किलोमीटर आगे चलकर त्रिवेणी घाट और यहाँ से लगभग 4 किलोमीटर आगे चलकर धूणी पंजैल गाँव आता है।
यहीं पर सड़क से घाटी में खड्ड से दूसरी तरफ प्रकृति की गोद में बहुत ही सुंदर देव स्थान है। यह स्थान जूना अखाड़ा के सिद्ध संत बाबा गंगागिरी जी की तपोस्थली है। इस स्थान पर कई प्राचीन मंदिर और देव अर्च विग्रह स्थापित हैं। यह स्थान मुख्यतः भगवान शिव के शिवलिंग स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है जिनकी यहाँ दांवीनाथ महाराज के रूप में पूजा होती है। शिवलिंग के रूप में दावींनाथ महाराज की स्थापना के संबंध में एक कथा (जिसे स्थानीय लोग सत्य मानते हैं) प्रचलित है। जिसके अंतर्गत ऐसा माना जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व भगवान शिव बाबा गंगागिरी के स्वप्न में आये और उन्हें बताया कि वे एक शिवलिंग के रूप में मार्कण्डेय नामक स्थान पर किसी खेत में दबे हुए हैं और उन्होंने बाबा गंगागिरी को निर्देश दिया कि वो वहां जाकर शिवलिंग को अपने साथ ले आएं। तत्पश्चात बाबा गंगागिरी स्थानीय लोगों को अपने साथ लेकर वहाँ पहुंचे और जब खुदाई की गई तब सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। क्योंकि वहां एक सूंदर शिवलिंग निकला था। लेकिन इसके बाद मार्कण्डेय गाँव के लोगों ने शिवलिंग को वहाँ से ले जाने से मना कर दिया। इस पर बाबा गंगागिरी ने उन लोगों से कहा कि ठीक है! आप लोग इस शिवलिंग को यहाँ से उठा कर स्थापित कर दो। लेकिन यदि आप इन्हे उठा नही पाए तो फिर हम लोग उठाएंगे और अपने साथ लेकर जाएंगे। स्थानीय लोग इस बात पर मान गए तथा शिवलिंग को उठाने लगे। परन्तु हज़ारो प्रयासों के बाद भी शिवलिंग को नही उठा सके और उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। उसके बाद बाबा गंगागिरी तथा उनके साथ आये लोगो ने प्रयास किया और बहुत मेहनत से शिवलिंग उठा लिया। इसके बाद बाबा गंगागिरी के माध्यम से उस शिवलिंग को पंजैल नामक स्थान पर लाया गया। यहाँ एक और रोचक घटना पहले ही घटित हो चुकी थी। जिस स्थान पर शिवलिंग स्थापित होना है वहां पर पहले से ही मंदिर निर्मित था। उस मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत छोटा था। शिवलिंग का आकार द्वार से बहुत बड़ा था। लोगों ने बहुत प्रयास किये परन्तु वे
शिवलिंग को द्वार के भीतर ले जाने में सफल नही हुए। इस पर बाबा गंगागिरी ने उन्हें विश्राम करने के लिए कहा। विश्राम के बाद जब लोग वापिस आये तब तक शिवलिंग मन्दिर के भीतर स्थापित हो चुका था। लोग इस घटना को बाबा गंगागिरी की सिद्धी से जोड़ते हैं। इस मंदिर के साथ ही दो मन्दिर और स्थित है जिनमें समाधियां है और शिवलिंग स्थापित हैं। इस स्थान पर एक अन्य मंदिर में भगवान शंकर माता गौरी के साथ विराजमान हैं। इस मंदिर को गौरी शंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में विराजमान भगवान शंकर माता गौरी की मूर्तियां अत्यंत प्राचीन प्रतीत होती हैं। इसके साथ ही माँ दुर्गा का मंदिर भी भी है। पवन पुत्र हनुमान जी की प्रतिमा भी यहाँ पर स्थापित की गई है। इस स्थान पर जो प्राचीन मन्दिर और सरायें है उसका निर्माण ब्यासपुर (बिलासपुर का पुराना नाम) के राजा द्वारा कराया गया था। इसकी निर्माण शैली सतलुज नदी में जलमग्न मंदिरों से मेल खाती है। यह मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना है। बाद में इसी स्थान पर बाबा गंगा गिरी ने समाधि ली। इस स्थान पर बाबा गंगा गिरी का धूणा लगभग 600 वर्ष से अनवरत चेतन है। इस चेतन धूणे के कारण ही इस गाँव का नाम धूणी पंजैल पड़ा है। वर्तमान समय मे इस स्थान की देखरेख एक युवा साधु बाबा सिद्धपूरी कर रहे हैं। इस स्थान पर प्रत्येक वर्ष महाशिवपुराण का आयोजन किया जाता है। साधु बाबा सिद्धपूरी के प्रयासों से ही यहाँ एक और भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर चल रहा है।
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