भारत या हिंदुस्तान जो कि नाम से ही स्पस्ट है की जहॉ आदि अनादि काल से सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू निवासरत थे और हैं,और यही रामायण,महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना हुई। भारत के अनेक अनेक स्थानों की अलग अलग महिमा और उनका वर्णन मिलता है और ये स्थान किसी न किसी ऐतिहासिक पृष्टभूमि की ओर इंगित करते हैं,और भारत भूमि को देवताओं की भूमि के नाम से भी जाना जाता है,भारत भूमि का दर्जा माँ से भी उच्च माना गया है-
जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी !! अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से से भी महान है ।
इस भूमि के क्षेत्रों में कहीं रामायण काल की सजीव चित्रण मिलते हैं, तो कही महाभारत काल के साक्ष्य मिलते हैं, कही मोहन जोदड़ो और हड़प्पा की सांस्कृतिक विरासत मिलती है, तो कही ईश्वर के पास और मोक्ष पाने के रास्ते मिलते हैं । ऐसी ही कुछ कहानियां और किवदंतियां मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के सतपुड़ा की पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच “पचमढ़ी” नामक स्थान की है जहाँ यह कहा जाता है ,और यह मान्यता भी है कि पचमढ़ी के सात पहाड़ियों के बाद “नागलोक का द्वार” है जो सीधे नागलोक की ओर जाता है,यही मान्यता है इस जगह की, तो आइए जानते हैं इस अलौकिक स्थान और उसके महत्व के बारे में…
भारत मे सत्यता कढ़ कढ़ में विद्यमान है और यही प्रमाण हमे अन्य देशों से अलग करता है,हमारी संस्कृति तो यह है कि हम भारतीय, सनातनी,वायु ,जल,मिट्टी और पत्थर को भी पूजते हैं जहां एक तरफ हम गौ वंश को माता का दर्जा देते हैं वही साक्षात परमब्रह्म को पिता का भी दर्जा दिया जाता है।
परन्तु कुछ असनातिनिक और कम्युनिस्ट विचार धारा के इतिहासकारो ने भारत की संस्कृति और भारतीय परंपरा को भी ताक में रखकर एक विशेष विचारधारा का प्रादुर्भाव पूरे देश में करने का खड़यंत्र रच रहे हैं जो कहीं न कहीं भारत की संस्कृति,एकता,अखंडता के लिए यह विचारधारा एक जहर का घोतक है, जिससे युवा पीढ़ी को वास्तविक इतिहास की जानकारी नही है,और जो इतिहस है वो युवा पीढ़ी को मिथ्या सा प्रतीत होता है,परन्तु सत्तोलाँजी इसी इसिहास की वास्तविकता को आपके सामने लाने का प्रयास कर रहा है,और पूर्व में महाभारत काल के वास्तविक जीवन को जीवन्त करने का प्रयास कर रहा है….
तो आइए जानते हैं ऐसे ही एक राज्य के बारे में जहां से जाता नागलोक का द्वार और होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण
भारत के एक राज्य मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के गढ में घनी पहाड़ियों के बीच एक ऐसा देवस्थान है, जिसे नागलोक का मार्ग या नागद्वार के नाम से जाना जाता है. यह स्थान पचमढ़ी में घने जंगलों के बीच है. यहाँ तक पहुंचने के लिए 7 पहाड़ों की दुर्गम चढ़ाई और बारिश में भीगे घने जंगलों से होकर जाना होता है..तब जाकर आप नागद्वारी पहुंच सकते हैं…मार्ग में कई कई नागों के दर्शन श्रद्धालुओं को होते है, ये नाग किसी को कोई हानि नहीं पहुँचाते..
श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं. 16 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं. नागद्वारी मंदिर की यह गुफा करीब 35 फीट लंबी है.. मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है…!
नागद्वारी के अंदर चिंतामणि गुफा है. यह गुफा लगभग 100 फीट लंबी है. इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं. स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है…स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं. पहाडिय़ों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा करके नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग पर काजल चढ़ाने से मनोकामनाएं पूरी होती है.ऐसी मान्यता है…!
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां आम स्थानों की तरह यहाँ वर्ष भर प्रवेश वर्जित होता है और साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है. हर साल नागपंचमी पर एक मेला लगता है. सावन के महीने में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है…!
नागद्वारी मंदिर की इस धार्मिक यात्रा को सैंकड़ों साल से ज्यादा हो गए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु कई पीढिय़ों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आते है..इस वर्ष कोरोना के कारण यात्रा रद्द की गई है…!
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