पुनर्जन्म- सत्य या मिथ
सर्वप्रथम हमे इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि पुनर्जन्म की सत्यता किस प्रकार के व्यक्ति के समक्ष,और कैसे व्यक्ति को करना चाहिए या संपादित करना चाहिए….?
।। तत्र बुद्धिमान्नास्तिक्यबुद्धिं जह्याद् विचिकित्सां च ।।
अर्थ- पुनर्जन्म का विचार करना हो तो सर्वप्रथम बुद्धिमान पुरुष के लिए उचित है कि वह नास्तिक, बुद्धिहीन और मूढ़ बुद्धि को त्याग देना चाहिए।
पुनर्जन्म एक भारतीय और विश्वव्यापी सत्य मान्यता है जिसमें जीवात्मा के जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है। विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण , गीता, योग आदि ग्रंथों में पूर्वजन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस मान्यता के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है।
८४ लाख योनियों में जीवात्मा अपने धर्म को प्रदर्शित करता है।
८४ चौरासी लाख योनि का गणना इस प्रकार है:
जलज जन्तु-९०००००
स्थावर जन्तु-२००००००
कृमि (कीटपतंग)-११०००००
पक्षिगण वर्ग-१००००००
पशुयोनि वर्ग-३००००००
मानव वर्ग योनि-४०००००
गणनानुक्र मे=८४००००० योनि
——————–————————————————-पुनर्जन्म की श्रंखला आत्मज्ञान होने के बाद रुकती है, जिसको मोक्ष के नाम से जाना जाता है ।
पुनर्जन्म (Reincarnation) का अर्थ है पुन: नवीपुनर्जन्म एक भारतीय मान्यता है जिसमें जीवात्मा के जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है।
विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण , गीता, योग आदि ग्रंथों में पूर्वजन्म की सत्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस मान्यता के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है। ८४ लाख योनियों में जीवात्मा अपने धर्म को प्रदर्शित करता है, आत्मज्ञान होने के बाद श्रृंखला रुकती है, जिस को मोक्ष के नाम से जाना जाता हैन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता।
मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है ।
तस्मादपरिहार्येथे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
शास्त्र कहते हैं कि ,जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है,अकाट्य है और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म भी निश्चित है,अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
मूल श्लोक
मामुपेत्यम पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ।।८.१५।।
महात्मा लोग मुझे प्राप्त करके दुख और पुनर्जन्म को प्राप्त नही होते हैं,क्योकि वे अर्थात महात्मा लोग,परमसिद्धि को प्राप्त होते हैं अर्थात उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
श्री मद्भगवत गीता के अनुसार “पुनर्जन्म-चेतना का स्थानन्तरण है ” जो कि आत्मा द्वारा ही सम्भव है, भगवान श्री कृष्ण कहते है कि आत्मा अजन्मी और अविनाशी है (७.१७)।
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रो को बदलकर नये वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार शरीर समाप्त होने पर,आत्मा नये शरीर को धारण करती है।
श्रीमद्भगवत गीता के २.१२ और सत्तोलॉजी पाठ्यक्रम के (Session no.७ -Reincarnation-Sattology Vs Mythology) के अनुसार पुनर्जन्म…..
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।२.१२।
शब्दों के शब्दार्थ व उनके अर्थ-
न- कभी नहीं (Never)
तु- लेकिन (But)
एव- निश्चित रुप से (Certainly)
अहम- अहंकार (I,Pride)
जातु- किसी भी समय (At any time)
न- कभी नही (Never)
आसम्- मौजूद या उपस्थित (Exist)
त्वम्- तुम (You)
इमे- ये सब (All these)
जनाधिपा:- राजा (King)
न -कभी नहीं
भविष्यामः- मौजूद रहेगा (Shall exist)
सर्वेवयम्- हम सब (All of us)
परम् – के बाद,पश्चात (Here after)
श्लोक का आशय- न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥
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